विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 102



  [ " अपने भीतर तथा बाहर एक साथ आत्मा की कल्पना करो , जब तक कि सम्पूर्ण अस्तित्व आत्मवान न हो जाए . " ]

जब तक तुम्हें यह न लगने लगे कि सब भेद समाप्त हो गए , सब सीमाएं विलीन हो गईं और जगत केवल ऊर्जा का एक महासागर रह गया है . यही वास्तविकता भी है . लेकिन विधि में जितने तुम गहरे उतरोगे , उतने ही भयभीत हो जाओगे  तुम्हें लगेगा कि तुम पागल हो रहे हो . क्योंकि तुम्हारी बुद्धि भेदों से बनी है , तुम्हारी बुद्धि इस तथाकथित वास्तविकता से बनी है , और जब यह वास्तविकता समाप्त होने लगती है तो साथ ही तुम्हें लगता है कि तुम्हारी बुद्धि भी नष्ट हो रही है .



विधि 100