विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 31



[" किसी कटोरे को उसके पार्श्व-भाग या पदार्थ को देखे बिना देखो . थोड़े ही क्षणों में बोध को उपलब्ध हो जाओ . "]

किसी भी चीज को देखो . एक कटोरा या कोई भी चीज काम देगी . लकिन देखने की गुणवत्ता भिन्न हो . किसी भी चीज को देखो ; लेकिन इन दो शर्तों के साथ . चीज के पार्श्व भाग को , किनारों को मत दखो ; पूरे विषय को , पूरी चीज को देखो . आमतौर से हम अंशों को देखते हैं . हो सकता है कि यह सचेतन न हो ; लेकिन हम अंशों को ही देखते हैं . अगर मैं तुम्हें देखता हूं तो पहले तुम्हारा चेहरा देखता हूं , तब धड़ को और तब पूरे शरीर को देखता हूं . किसी विषय को पूरे का पूरा देखो ; उसे टुकड़ों में मत बांटो . क्यों ? इसलिए कि जब तुम किसी चीज को हिस्सों में बांटते हो तो आँखों को हिस्सों में देखने का मौका मिलता है . चीज को उसकी  समग्रता में देखो . तुम यही कर सकते हो . जमन पर लेट जाओ , अंधेरे आसमान को देखो और तब अपनी दृष्टि को किसी एक तारे पर स्थिर करो . उस पर अपने को एकाग्र करो , उस पर टकटकी बाँध दो . अपनी चेतना को समेटकर एक ही तारे से जोड़ दो ;  शेष तारों को भूल जाओ . धीरे-धीरे अपनी दृष्टि को समेटो , एकाग्र करो . दूसरे सितारे दूर हो जायेंगे और धीरे-धीरे विलीन हो जायेंगे और सिर्फ एक तारा बच रहेगा . उसे एकटक देखते जाओ , देखते जाओ . एक क्षण आएगा जब वह तारा भी विलीन हो जायेगा . और जब वह तारा विलीन होगा तब तुम्हारा स्वरूप तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगा .



विधि 100