विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 68



[ "जैसे मुर्गी अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है , वैसे ही यथार्थ में विशेष ज्ञान और विशेष कृत्य का पालन-पोषण करो ." ]

इस विधि में मूलभूत बात है : 'यथार्थ में ' . तुम भी बहुत चीजों का पालन-पोषण करते हो ; लेकिन सपने में , सत्य में नहीं . तुम भी बहुत कुछ करते हो ; लेकिन सपने में , सत्य में नहीं . सपनों को पोषण देना छोड़ दो ; सपनों को बढ़ने में सहयोग मत दो . सपनों को अपनी ऊर्जा मत दो . सभी सपनों से अपने को पृथक कर लो . इस क्षण में , वर्तमान में जीने कि चेष्टा करो . और आशाएं मत पालों --चाहे वे किसी भी ढंग की हों . वे लौकिक हो सकती हैं , पारलौकिक हो सकती हैं ; इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है . वे धार्मिक हो सकती हैं , किसी भविष्य में , किसी दूसरे लोक में , स्वर्ग में , मृत्यु के बाद , निर्वाण में ; लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है . कोई आशा मत करो . यदि तुम्हें थोड़ी निराशा भी अनुभव हो , तो भी यहीं रहो . यहां से और इस क्षण से मत हटो . हटो ही मत . दुःख सह लो , लेकिन आशा को मत प्रवेश करने दो . आशा के द्वरा स्वप्न प्रवेश करते हैं . निराश रहो ; अगर जीवन में निराशा है तो निराश रहो . निराशा को स्वीकार करो ; लेकिन भविष्य में होने वाली किसी घटना का सहारा मत लो . और तब अचानक बदलाहट होगी . जब तुम वर्तमान में ठहर जाते हो तो सपने भी ठहर जाते हैं . तब वे नहीं उठ सकते , क्योंकि उनका स्रोत ही बंद हो गया .



विधि 100