विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 63



["जहां कहीं तुम्हारा मन भटकता है , भीतर या बाहर , उसी स्थान पर , यह ."]

जब तुम्हारा मन भटकता है तो दो चीजें होती हैं . एक तो बादल हैं , विचार हैं , विषय हैं , बिंब हैं ; और दूसरी चेतना है , खुद मन . जब तुम बादलों पर , विचारों पर , बिंबों पर बहुत ध्यान देते हो तो तुम आकाश को भूल गए . तब तुम मेजबान को भूल गए और मेहमान में ही बुरी तरह उलझ गए . वे विचार , वे बिंब , जो भटक रहे हैं ; केवल मेहमान हैं . अगर  तुम मेहमानों पर सब ध्यान लगा देते हो तो तुम अपनी आत्मा ही भूल बैठे . अपने ध्यान को मेहमानों से हटाकर मेजबान पर लगाओ ; बादलों से हटाकर आकाश पर केंद्रित करो . और इसे व्यावहारिक ढंग से करो . कामवासना उठती है ; यह बादल है . या बड़ा घर पाने का लोभ पैदा होता है ; यह भी बादल है . तुम इससे इतने ग्रस्त हो जा सकते हो कि तुम भूल ही जाओ कि यह किस में उठ रहा है , यह किस को घटित हो रहा है , कौन इसके पीछे है , किस आकाश में यह बादल उठ रहा है . उस आकाश को स्मरण करो ; और अचानक बादल विदा हो जाएगा . सिर्फ दृष्टि बदलने की जरुरत है ; परिप्रेक्ष्य बदलने की जरुरत है . दृष्टि को विषय से विषयी पर , बाहर से भीतर पर , बादल से आकाश पर , अतिथि से आतिथेय पर ले जाने की जरुरत है . सिर्फ दृष्टि को बदलना है , फोकस बदलना है .



विधि 100