विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 58



["यह तथाकथित जगत जादूगरी जैसा या चित्र-कृति जैसा भासता है . सुखी होने के लिए उसे वैसा ही देखो ."]

सात दिन के लिए यह प्रयोग करो . सात दिन तक एक ही चीज स्मरण रखो कि सारा जगत नाटक मात्र है-- और तुम वही नहीं रहोगे जो अभी हो . सिर्फ सात दिन के लिए प्रयोग करो . तुम्हारा कुछ खो नहीं जाएगा , क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए भी तो कुछ नहीं है . तुम प्रयोग कर सकते हो . साथ दिन तक सब कुछ को नाटक समझो , तमाशा समझो .
    इन सात दिनों में तुम्हें तुम्हारे बुद्ध -स्वभाव की , तुम्हारी आंतरिक पवित्रता की अनेक झलकें मिलेंगी . और इस झलक के मिलने के बाद तुम फिर वही नहीं रहोगे जो हो . तब तुम सुखी होगे . और तुम सोच भी नहीं सकते कि वह सुख किस तरह का होगा , क्योंकि तुमने कोई सुख नहीं जाना है . तुमने सिर्फ दुःख की कम-अधिक मात्राएं भर जानी हैं ; कभी तुम ज्यादा दुखी थे और कभी कम . तुम नहीं जानते हो सुख क्या है , तुम उसे नहीं जान सकते हो . जब तुम्हारी जगत की धारणा ऐसी है कि तुम उसे बहुत गंभीरता  से लेते हो तो तुम नहीं जान सकते कि सुख का है . सुख तो तभी घटित होता है जब तुम्हारी यह धारणा दृढ़ होती है कि यह जगत केवल एक लीला है .
   इस विधि को प्रयोग में लाओ और हर चीज को उत्सव की तरह लो , हर चीज को उत्सव मनाने के भाव से करो . ऐसा समझो कि यह नाटक है , कोई असली चीज नहीं . अगर तुम पति हो तो नाटक के पति बन जाओ ; अगर तुम पत्नी हो तो नाटक की पत्नी बन जाओ . अपने संबंधों को खेल बना लो . बेशक खेल के नियम हैं ; खेल के लिए नियम जरूरी हैं . विवाह नियम है , तलाक नियम है . उनके बारे में गंभीर मत होओ . वे नियम हैं और एक नियम से दूसरा नियम्निक्लता है . तलाक बुरा है , क्योंकि विवाह बुरा है . एक नियम दूसरे नियम को जन्म देता है . लेकिन उनें गंभीरता से मत लो और फिर देखो कि कैसे तत्काल तुम्हारे जीवन का गुणधर्म बदल जाता है .



विधि 100