विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 70



[ "अपनी प्राण-शक्ति को मेरुदंड में ऊपर उठती , एक केन्द्र से दूसरे केन्द्र की ओर गति करती हुई प्रकाश-किरण समझों ; और इस भांति तुममें जीवंतता ." ]

मेरुदंड के दो छोर हैं . उसके आरंभ में काम-केन्द्र है और उसके शिखर पर सहस्रार है--सिर के ऊपर जो सातवां चक्र है . मेरुदंड का जो आरंभ है वह पृथ्वी से जुड़ा है ; कामवासना तुम्हारे भीतर सर्वाधिक पार्थिव चीज है . तुम्हारे मेरुदंड के आरंभिक चक्र के द्वारा तुम निसर्ग के संपर्क में आते हो , जिसे सांख्य प्रकृति कहता है--पृथ्वी , पदार्थ . और अंतिम चक्र से , सहस्रार से तुम परमात्मा के संपर्क में होते हो .
  तुम्हारेअस्तित्व के ये दो ध्रुव हैं . पहला काम-केन्द्र है , और दूसरा सहस्रार है . अंग्रेजी में सहस्रार के लिए कोई शब्द नहीं है . ये ही दो ध्रुव हैं . तुम्हारा जीवन या तो कामोन्मुख होगा या सह्स्रारोंमुख होगा . या तो तुम्हारी ऊर्जा काम-केन्द्र से बहकर पृथ्वी में वापस जाएगी , या तुम्हारी ऊर्जा सहस्रार से निकलकर अनंत आकाश में समा जाएगी . तुम सहस्रार से ब्रह्म में , परमसत्ता में प्रवाहित हो जाते हो . तुम काम-केन्द्र से पदार्थ जगत में प्रवाहित होते हो . ये दो प्रवाह हैं ; ये दो संभावनाएं हैं .
   जब तक तुम ऊपर की ओर विकसित नहीं होते , तुम्हारे दुःख कभी समाप्त नहीं होंगे . तुम्हें सुख की झलकें मिल सकती हैं ; लेकिन वे झलकें ही होंगी , और बहुत भ्रामक होंगी . जब ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होगी , तुम्हें सुख की अधिकाधिक सच्ची झलकें मिलने लगेंगी . और जब ऊर्जा सहस्रार पर पहुंचेगी , तुम परम आनंद को उपलब्ध हो जाओगे . वही निर्वाण है . तब झलक नहीं मिलती , तुम आनंद ही हो जाते हो .



विधि 100