विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 11



( " जब चींटी के रेंगने की अनुभूति हो तो इन्द्रियों के द्वार बंद कर दो . तब ! " )

जो भी अनुभव हो , इन्द्रियों के सब द्वार बंद कर दो . करना क्या है ? आँखें बंद कर लो और सोचो कि मैं अंधा हूँ और देख नहीं सकता . अपने कान बंद कर लो और सोंचो  कि मैं सुन नहीं सकता . पांच इन्द्रियां हैं , उन सब को बंद कर दो . लेकिन उन्हें बंद कैसे करोगे ? यह आसान है . क्षण भर के लिए सांस लेना बंद कर दो , और तुम्हारी सब इन्द्रियां बंद हो जाएंगी . और जब सांस रुकी है और इन्द्रियां बंद हैं , तो रेंगना कहाँ है ? अचानक तुम दूर , बहुत दूर हो जाते हो .

 यह विधि कहती है : " इन्द्रियों के द्वार बंद कर दो ." पत्थर की तरह हो जाओ . जब तुम सच में संसार के लिए बंद हो जाते हो तो तुम अपने शरीर के प्रति भी बंद हो जाते हो , क्योंकि तुम्हारा शरीर तुम्हारा हिस्सा न होकर संसार का हिस्सा है . जब तुम संसार के प्रति बिलकुल बंद हो जाते हो तो अपने शरीर के प्रति भी बंद हो गए . और तब , शिव कहते हैं , तब घटना घटेगी .

 इसलिए शरीर के साथ इसका प्रयोग करो . किसी भी चीज से काम चल जायेगा , रेंगती चींटी ही जरुरी नहीं है . नहीं तो तुम सोचोगे जब चींटी रेंगेगी तो ध्यान करेंगे . और ऐसी सहायता करने वाली चींटियाँ आसानी से नहीं मिलती हैं . इसलिए किसी से भी चलेगा . तुम अपने बिस्तर पर पड़े हो और ठंडी चादर महसूस हो रही है , उसी क्षण मृत हो जाओ . अचानक चादर दूर होने लगेगी , विलीन होजायेगी . तुम बंद हो , मृत हो , पत्थर जैसे हो , जिसमें कोई भी रंध्र नहीं है ; तुम हिल नहीं सकते . और जब तुम हिल नहीं सकते तब तुम अपने पर फेंक दिए जाते हो , अपने में केंद्रित हो जाते हो , और तब पहली बार तुम अपने केन्द्र से देख सकते हो . और एक बार जब अपने केन्द्र से देख लिया तो फिर तुम वही व्यक्ति नहीं रह जाओगे जो थे .



विधि 100