विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 21



("अपने अमृत-भरे शरीर के किसी अंग को सुई से भेदों , और भद्रता के साथ उस भेदन में प्रवेश करो , और आंतरिक शुद्धि को उपलब्ध होओ .")

सुई से भी छेद करने की जरुरत नहीं है . रोज ऐसी अनेक चीजें घटित होती हैं , जिन्हें तुम ध्यान के लिए उपयोग में ला सकते हो . या कोई ऐसी स्थिति निर्मित भी कर सकते हो .तुम्हारे भीतर कहीं कोई पीड़ा हो रही है . एक काम करो . शेष शरीर को भूल जाओ , केवल उस भाग पर मन को एकाग्र करो जिसमें पीड़ा है . और तब एक अजीब बात अनुभव में आयेगी . जब तुम पीड़ा वाले भाग में मन को एकाग्र करोगे तो देखोगे वह भाग सिकुड़ रहा है , छोटा हो रहा है . पहले तुमने समझा था कि पूरे पांव में पीड़ा है , लेकिन जब एकाग्र होकर उसे देखोगे तो मालूम होगा दर्द पूरे पांव में नहीं है , वह तो अतिशयोक्ति है , दर्द सिर्फ घुटने में है . और ज्यादा एकाग्र होओ , और तुम देखोगे कि दर्द पूरे घुटने में नहीं है , एक छोटे से बिंदु में है . फिर उस बिंदु पर एकाग्रता साधो , शेष शरीर को भूल जाओ . आँखें बंद रखो और एकाग्रता को बढ़ाये जाओ और खोजो कि पीड़ा कहां है . पीड़ा का क्षेत्र सिकुड़ता जायेगा , छोटे से छोटा होता जायेगा . और एक क्षण आयेगा जब वह मात्र सुई की नोक भर रह जायेगा . उस सुई की नोक पर भी एकाग्रता की नज़र गड़ाओ , और अचानक वह नोक भी विदा हो जायेगी और तुम आनंद से भर जाओगे . पीड़ा की बजाये तुम आनंद से भर जाओगे .



विधि 100