विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 52



["भोजन करते हुए या पानी पीते हुए भोजन या पानी का स्वाद ही बन जाओ , और उससे भर जाओ ."]

हम खाते रहते हैं , हम खाए बगैर नहीं रह सकते . लेकिन हम बहुत बेहोशी में भोजन करते हैं-- यंत्रवत . और अगर स्वाद न लिया जाए तो तुम सिर्फ पेट को भर रहे हो . तो धीरे-धीरे भोजन करो , स्वाद लेकर करो और स्वाद के प्रति सजग रहो . और स्वाद के प्रति सजग होने के लिए धीरे-धीरे भोजन करना बहुत जरूरी है . तुम भोजन को बस निगलते मत जाओ . आहिस्ते-आहिस्ते उसका स्वाद लो और स्वाद ही बन जाओ . जब तुम मिठास अनुभव करो तो मिठास ही बन जाओ . और तब वह मिठास सिर्फ मुंह में नहीं , सिर्फ जीभ में नहीं , पूरे शरीर में अनुभव की जा सकती है . वह सचमुच पूरे शरीर में फ़ैल जायेगी . तुम्हें लगेगा कि मिठास-- या कोई भी चीज -- लहर की तरह फैलती जा रही है . इसलिए तुम जो कुछ खाओ , उसे स्वाद लेकर खाओ , और स्वाद ही बन जाओ .



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