विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 50



["काम-आलिंगन के बिना ऐसे मिलन का स्मरण करके भी रूपांतरण होगा ."]

एक बार तुम इसे जान गए तो प्रेम-पात्र की , साथी की जरुरत भी नहीं है . तब तुम कृत्य का स्मरण कर उसमें प्रवेश कर सकते हो . लेकिन पहले भाव का होना जरूरी है . अगर भाव से परिचित हो तो साथी के बिना भी तुम कृत्य में प्रवेश कर सकते हो . इस विधि का प्रयोग करते समय आंख बंद रखना अच्छा है तो ही वर्तुल का आंतरिक भाव , एकता का आंतरिक भाव निर्मित हो सकता है . और फिर उसका स्मरण करो . आंख बंद कर लो और ऐसे लेट जाओ मानो तुम अपने साथी केसाथ लेते हो . स्मरण करो और भाव करो . तुम्हारा शरीर कांपने लगेगा , तरंगायित होने लगेगा . उसे होने दो . यह बिलकुल भूल जाओ कि दूसरा नहीं है . ऐसे गति करो जैसे कि दूसरा उपस्थित है . शुरूमें कल्पना से ही काम लेना होगा . एक बार जान गए कि यह कल्पना नहीं , यथार्थ है ; तब दूसरा मौजूद  है .  ऐसे गति करो जैसे कि तुम वस्तुतः संभोग में उतर रहे हो , वह सब कुछ करो जो तुम अपने प्रेम-पात्र के साथ करते ; चीखो , डोलो , कांपों . शीघ्र वर्तुल निर्मित हो जाएगा . और यह वर्तुल अद्भुत है . शीघ्र ही तुम्हें अनुभव होगा कि वर्तुल बन गया , लेकिन अब यह वर्तुल स्त्री-पुरुष से नहीं बना है . अगर तुम पुरुष हो तो सारा ब्रह्मांड स्त्री बन गया है और अगर तुम स्त्री हो तो सारा ब्रह्मांड पुरुष बन गया है . अब तुम खुद अस्तित्व के साथ प्रगाढ़ मिलन में हो और उसके लिए दूसरा द्वार की तरह अब नहीं है .



विधि 100