विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 112



 [ " आधारहीन , शाश्वत , निश्चल आकाश में प्रविष्ट होओ . " ]

इस विधि में आकाश के , स्पेस के तीन गुण दिए गए हैं . आधारहीन : आकाश में कोई आधार नहीं हो सकता . शाश्वत : वह कभी समाप्त नहीं हो सकता . निश्चल : वह सदा ध्वनि-रहित मौन होगा . इस आकाश में प्रवेश करो , यह तुम्हारे भीतर ही है .
       उस आकाश का न कोई आदि है न कोई अंत .और वह आकाश पूर्णतः शांत है , वहां कुछ भी नहीं है-- कोइ बुलबुला तक नहीं , सब कुछ निश्चल है .
        वह बिंदु तुम्हारे ही भीतर है . किसी भी क्षण तुम उसमें प्रवेश कर सकते हो . यदि तुममें आधारहीन होने का साहस है तो इसी क्षण तुम उसमें प्रवेश कर सकते हो . द्वार खुला है . निमंत्रण सबके लिए है . लेकिन साहस चाहिए-- अकेले होने का , रिक्त होने का , मिट जाने का और मरने का . और यदि तुम अपने भीतर आकाश में मिट जाओ तो तुम ऐसे जीवन को पा लोगे जो कभी नहीं मरता , तुम अमृत को उपलब्ध हो जाओगे .



विधि 100